वांग यी

चीन के विदेश मंत्री वांग यी का भारत दौरा: क्या बदलेगी तालमेल की दिशा?

नई दिल्ली इस महीने एक अहम कूटनीतिक हलचल का गवाह बनने जा रहा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi) अगस्त के आखिरी हफ्ते में भारत पहुंचेंगे, और सभी की निगाहें इस मुलाक़ात पर टिकी होंगी। वजह साफ है — भारत और चीन के रिश्ते पिछले कुछ सालों में भावनाओं, तनाव और उम्मीदों के कई पड़ाव पार कर चुके हैं।

रिश्तों की पृष्ठभूमि

भारत-चीन की कहानी सिर्फ़ पड़ोसी देशों की नहीं है, बल्कि एशिया की दो बड़ी ताक़तों के बीच भरोसे और संदेह की यात्रा भी है।

  • 1962 का युद्ध इतिहास में गहरी चोट छोड़ गया।
  • 2020 की गलवान घाटी झड़प ने दोनों देशों के बीच अविश्वास का नया दौर शुरू किया।
  • लेकिन हर संकट के बाद बातचीत की कोशिशें भी हुईं।

अब जबकि वैश्विक राजनीति अमेरिका-रूस-चीन त्रिकोण पर घूम रही है, भारत अपने संतुलन को बनाने की कोशिश कर रहा है।

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इस दौरे से क्या उम्मीदें हैं?

विदेश मंत्री वांग यी की यह यात्रा केवल औपचारिक मुलाक़ात नहीं है। इसके पीछे कई अहम मुद्दे छिपे हैं:

  1. सीमा विवाद (LAC):
    सीमा पर शांति के बिना विश्वास बहाल होना मुश्किल है। भारतीय पक्ष कई बार साफ कह चुका है — “peace on border is must for normal relations.”
  2. व्यापार और अर्थव्यवस्था:
    दुनिया को चौंकाने वाली बात है कि तमाम तनावों के बावजूद चीन आज भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। लेकिन व्यापार संतुलन भारी तौर पर चीन के पक्ष में है। वांग यी की इस यात्रा में शायद आर्थिक दरारों को कम करने पर बात हो।
  3. रणनीतिक गणित (Strategic Equations):
    भारत का अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ QUAD में बढ़ता सहयोग चीन को असहज करता है। वहीं भारत, BRICS और SCO में चीन से भी करीबी बनाए रखना चाहता है। इसीलिए यह वार्ता दोनों के लिए अहम है।
  4. जन-संपर्क और संस्कृति:
    पढ़ाई, टूरिज्म, फिल्म और तकनीकी सहयोग जैसे softer issues भी इस बातचीत का हिस्सा बन सकते हैं — जो रिश्तों की तापमान कम करने में सहायक होंगे।

क्या बदल पाएगी हवा?

कूटनीति के जानकार मानते हैं कि भारत-चीन रिश्तों का future किसी एक मीटिंग से तय नहीं होगा, लेकिन यह यात्रा संकेत ज़रूर देगी। वांग यी अगर सीमा विवाद पर कोई लचीला रुख दिखाते हैं तो यह एक बड़ा संदेश होगा। दूसरी ओर, भारत के लिए सबसे अहम है अपनी Strategic Autonomy को बनाए रखना — यानी अमेरिका-रूस-चीन, तीनों से रिश्ते संभालना लेकिन किसी के camp में पूरी तरह शामिल न होना।

आम जनता की नज़र

दिलचस्प बात यह भी है कि आम भारतीय जनता में चीन को लेकर skepticism (संदेह) अधिक है। गलवान के बाद लोगों के मन में चीन के प्रति नाराज़गी रही है। इस माहौल में सरकार पर यह दबाव भी रहेगा कि वह मुलाक़ात में सख़्त और साफ़ रुख अपनाए।

निष्कर्ष

वांग यी की भारत यात्रा को आप एक testing phase मान सकते हैं। यह मुलाक़ात भारत-चीन रिश्तों में नया मोड़ ला सकती है या वही “सकारात्मक बातें, व्यावहारिक कठिनाइयाँ” वाला पैटर्न दिखा सकती है।

लेकिन इतना तय है कि एशिया की राजनीति और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर दिल्ली और बीजिंग की बातचीत का असर जरूर पड़ेगा। इसीलिए यह दौरा सिर्फ़ दो विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात नहीं, बल्कि भविष्य के कई समीकरणों का संकेत है।

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